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तद्वां॑ नरा नासत्या॒वनु॑ ष्या॒द्यद्वां॒ माना॑स उ॒चथ॒मवो॑चन्। अ॒स्माद॒द्य सद॑सः सो॒म्यादा वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

tad vāṁ narā nāsatyāv anu ṣyād yad vām mānāsa ucatham avocan | asmād adya sadasaḥ somyād ā vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

तत्। वा॒म्। न॒रा॒। ना॒स॒त्यौ॒। अनु॑। स्या॒त्। यत्। वा॒म्। माना॑सः। उ॒चथ॑म्। अवो॑चन्। अ॒स्मात्। अ॒द्य। सद॑सः। सो॒म्यात्। आ। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१८२.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:182» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:28» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर साधारण भाव से अध्यापक और उपदेशक के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नरा) नायक अग्रगामी (नासत्यौ) असत्य आचरण से रहित अध्यापकोपदेशको ! (यत्) जो (वाम्) तुम दोनों को (अनु, ष्यात्) चाहते हुए के अनुकूल हो (तत्) वह आप लोगों को हो अर्थात् परिपूर्ण हो और (मानासः) विचारशील सज्जन पुरुष (यत्) जिस (उचथम्) कहने योग्य विषय को (अवोचन्) कहें उसको तुम दोनों ग्रहण करो, जैसे (अद्य) आज (तस्मात्) इस (सोम्यात्) सोम गुण सम्पन्न (सदसः) सभास्थान से (इषम्) इच्छासिद्धि (वृजनम्) बल (जीरदानुम्) जीवन के उपाय को हम लोग (आ) (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य को यह अच्छे प्रकार उचित है कि अपने प्रयोजन को चाहे तथा परोपकार भी चाहे और विद्वान् जन जिस जिसका उपदेश करें उस उसको प्रीति से सब लोग ग्रहण करें ॥ ८ ॥इस सूक्त में विद्वानों के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ बयासीवाँ सूक्त और अट्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः साधारणतयाऽध्यापकोपदेशकविषयमाह ।

Anvay:

हे नरा नासत्यौ यद्वां युवयोरिष्टमनुष्यात्तद्वां भवतु मानासो यदुचथमवोचंस्तद्युवां गृह्णीयाताम्। यथाऽद्यास्मात्सोम्यात्सदस इषं वृजनं जीरदानुं वयमाविद्याम तथैतद्युवामप्याप्नुतम् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (तत्) (वाम्) युवयोः (नरा) नेतारौ (नासत्यौ) असत्याचारविरहितौ (अनु) (स्यात्) (यत्) (वाम्) युवयोः (मानासः) विज्ञानवन्तः (उचथम्) वक्तुं योग्यम् (अवोचन्) कथयेयुः (अस्मात्) (अद्य) (सदसः) सभातः (सोम्यात्) सोमगुणसम्पन्नात् (आ) (विद्याम) (इषम्) इच्छासिद्धिम् (वृजनम्) बलम् (जीरदानुम्) जीवनोपायम् ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यस्येदं समुचितमस्ति यत्स्वार्थमिच्छेत्परार्थमपीच्छेत्। विद्वांसो यद्यदुपदिशेयुस्तत्तत्प्रीत्या सर्वे गृह्णीयुरिति ॥ ८ ॥अत्र विद्वत्कृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति द्व्यशीत्युत्तरं शततमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी योग्य प्रयोजन व परोपकार यांची इच्छा बाळगावी. विद्वान लोक ज्या ज्या गोष्टीचा उपदेश करतात त्याला सर्वांनी प्रेमाने स्वीकारावे. ॥ ८ ॥